मध्यप्रदेश के पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में जो छात्रवृत्ति घोटाला सामने आया है, उसने प्रदेश की नौकरशाही और प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। इस पूरे मामले को सबसे पहले केंद्र सरकार ने उजागर किया, जिसने जांच कर साफ कर दिया कि छात्रों को दी जाने वाली स्कॉलरशिप में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं। केंद्र की सख्ती के बाद विभाग को इस पर कार्रवाई करनी पड़ी, लेकिन जिस तरीके से कार्रवाई की गई है, उसने संदेह को और गहरा कर दिया है।
केंद्र सरकार ने कैसे पकड़ी गड़बड़ी?
केंद्र सरकार की स्कॉलरशिप योजना के तहत देशभर में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के 11वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों को हर साल 5700 रुपये की छात्रवृत्ति दी जाती है। इस योजना का उद्देश्य ऐसे छात्रों को पढ़ाई में मदद देना है, जो महंगी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा पाते। लेकिन इसी योजना के नाम पर मध्यप्रदेश में लाखों रुपये ऐसे छात्रों को बांट दिए गए, जो इसके हकदार ही नहीं थे।
केंद्र सरकार की जांच रिपोर्ट में साफ हुआ कि भोपाल समेत कई जिलों में कई ऐसे मदरसे और स्कूल थे, जिनकी मान्यता सिर्फ 10वीं कक्षा तक ही थी। फिर भी इन संस्थानों ने 11वीं और 12वीं के छात्रों के नाम पर स्कॉलरशिप क्लेम की और उन्हें रकम भी जारी हो गई। सिर्फ भोपाल जिले में ही 1100 से ज्यादा अपात्र छात्रों को करीब 57 लाख 78 हजार रुपये की छात्रवृत्ति दी गई।
भोपाल में उजागर हुए आंकड़े, दूसरे जिलों में भी शक
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह घोटाला सिर्फ भोपाल तक ही सीमित नहीं है। केंद्र सरकार ने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ भोपाल के आंकड़े सार्वजनिक किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल जिले में ही 1000 से ज्यादा अपात्र छात्रों की सूची थी, लेकिन विभाग ने FIR में सिर्फ 972 छात्रों का जिक्र किया। इसी तरह केंद्र की रिपोर्ट में 83 संस्थानों का नाम आया जबकि विभाग ने केवल 44 संस्थानों को संदिग्ध बताया। ऐसे में साफ है कि कहीं न कहीं कुछ संस्थानों और अधिकारियों को बचाने की कोशिश की जा रही है।
जांच में खुद अधिकारी भी सवालों के घेरे में
इस घोटाले की जांच के लिए विभाग ने क्राइम ब्रांच भोपाल में FIR दर्ज करवाई है। विभाग ने इसे जालसाजी का मामला बताया, लेकिन सवाल यह है कि जब सरकारी धन का दुरुपयोग हुआ है तो जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) से क्यों नहीं करवाई गई? आमतौर पर करोड़ों के घोटाले या वित्तीय गड़बड़ी की जांच EOW ही करता है, जिससे दोषियों तक पहुंचने में कोई कोताही न हो।
जांच में यह भी सामने आया कि कुछ विभागीय अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है। जानकारों का मानना है कि यह सिर्फ जालसाजी नहीं, बल्कि सुनियोजित घोटाला है जिसमें विभाग के कुछ कर्मचारी और संस्थान आपस में मिले हुए हैं।
किन स्कूलों और मदरसों पर शक?
इस स्कॉलरशिप घोटाले में कई मदरसे और निजी स्कूल शक के घेरे में हैं। इनमें प्रमुख नाम हैं :
- एमएस आसिफ सईद उर्दू
- हनीफ सर मैथ्यू अर्नाल्ड (करोंद)
- न्यू म.ज. कन्वेंट स्कूल (बैरसिया)
- सेंट देसूजा कॉन्वेंट (कमला पार्क)
- सिटी मोंटेसरी स्कूल (जहांगीराबाद)
- न्यू एससीबी कॉन्वेंट (अशोका गार्डन)
- एम. अरबिया अमीरुल इस्लाम
- एम. दीनियत अयशुल उलुम
- मदरसा अहद तालीमुल कुरान (बाग दिलकुशा)
- मदरसा ऐमन दीनी (भोईपुरा)
- मदरसा बुशरा दीनी (ईटखेड़ी)
इन सभी पर शक है कि इन्होंने अपात्र छात्रों के नाम पर स्कॉलरशिप ली और उसका बड़ा हिस्सा कहीं और इस्तेमाल किया गया।
क्या है योजना का नियम और कहां हुई चूक?
भारत सरकार की पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के तहत यह स्कॉलरशिप योजना चलाई जाती है। इसके तहत 11वीं और 12वीं के छात्रों को प्रति वर्ष 5700 रुपये की छात्रवृत्ति दी जाती है। लेकिन इसका लाभ उन्हीं संस्थानों को मिलना चाहिए जिनके पास मान्यता है। ऐसे में जिन स्कूलों या मदरसों की मान्यता सिर्फ 10वीं तक थी, वे 11वीं और 12वीं के नाम पर स्कॉलरशिप कैसे बांट सकते हैं? यही सबसे बड़ा सवाल है।
क्यों उठ रहे हैं सवाल?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह खेल सालों से कैसे चलता रहा? क्या किसी ने दस्तावेजों की जांच नहीं की? छात्रों की सूची, स्कूल की मान्यता और बैंक खातों की वैधता तक कैसे अनदेखी हुई? क्या विभाग के कुछ अधिकारियों ने इस पूरे खेल में स्कूलों के साथ सांठगांठ कर मोटी रकम खाई? सवाल कई हैं लेकिन जवाब किसी के पास नहीं।
क्या होगी अगली कार्रवाई?
अब जबकि मामला उजागर हो चुका है, आम लोग और छात्र संगठन मांग कर रहे हैं कि मामले की जांच EOW से कराई जाए ताकि असली दोषियों को सजा मिल सके। इसके अलावा केंद्र सरकार ने भी विभाग से कड़ी कार्रवाई की उम्मीद जताई है। अगर सही तरीके से जांच हुई तो आने वाले दिनों में और बड़े खुलासे हो सकते हैं।
जनता क्या करे?
छात्रों और अभिभावकों को सलाह दी जा रही है कि अगर उनके स्कूल या मदरसे का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है, तो वे पूरी जानकारी लें और जरूरत पड़ने पर RTI के जरिए जानकारी निकलवाएं। साथ ही जांच एजेंसियों को भी सहयोग करें ताकि सच्चाई सबके सामने आए।