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भोपाल में ‘प्लास्टिकमैन’ की मुहिम: पॉलिथीन को कहो बाय-बाय, कैंसर को दूर भगाओ

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के हाट बाजारों में इन दिनों अगर आप जाएं तो एक खास चेहरे को लोग दूर से ही पहचान लेते हैं — ये हैं ‘प्लास्टिकमैन’। नाम सुनने में अनोखा लगता है लेकिन इसके पीछे की कहानी और मकसद दोनों ही बेहद जरूरी हैं। शहर में हर रोज हजारों पॉलिथीन के थैले इस्तेमाल होते हैं, जो एक ओर जहां पर्यावरण को बर्बाद कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर लोगों की सेहत के लिए भी खतरनाक साबित हो रहे हैं। इसी खतरे को समझाने और रोकने के लिए ‘प्लास्टिकमैन’ अपने ग्रुप के साथ मैदान में उतरे हैं।

कौन हैं भोपाल के ‘प्लास्टिकमैन’?

भोपाल के सब्जी बाजारों में इस अभियान को शुरू किया है सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार ने, जिन्हें लोग अब ‘प्लास्टिकमैन’ के नाम से पुकारने लगे हैं। राजकुमार ने लोकल मीडिया से बातचीत में बताया कि वे ‘यंग शाला’ नामक युवा संगठन से जुड़े हैं। इस संगठन ने ‘कला, क्लाइमेट और हम’ थीम के साथ भोपाल की विभिन्न सब्जी मंडियों में अभियान चलाया है। राजकुमार का मानना है कि सिर्फ बातें करने से कुछ नहीं होगा, हमें अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। पॉलिथीन का विकल्प कपड़े के थैले को बनाना ही होगा, तभी आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण मिल सकेगा।

5 साल से जुटी हैं रुचिका सचदेवा

राजकुमार अकेले नहीं हैं। इस मुहिम की एक और मजबूत कड़ी हैं पर्यावरणविद रुचिका सचदेवा, जो पिछले पांच साल से भोपाल की प्रमुख सब्जी मंडियों को पॉलिथीन मुक्त बनाने के लिए लगातार काम कर रही हैं। रुचिका बताती हैं कि न्यू मार्केट, बिट्टन मार्केट, बरखेड़ा पठानी, पुरानी सब्जी मंडी और करोद मंडी जैसे बड़े बाजारों में रोजाना करीब 20 हजार पॉलिथीन बैग्स का इस्तेमाल होता है। यह आंकड़ा न सिर्फ भयावह है बल्कि इस बात की चेतावनी भी है कि अगर अभी भी पॉलिथीन का इस्तेमाल नहीं रोका गया तो भविष्य में इसके परिणाम बेहद गंभीर होंगे।

क्यों इतनी खतरनाक है यह पॉलिथीन?

रुचिका सचदेवा के मुताबिक, हाट बाजारों में मिलने वाली पॉलिथीन का माइक्रोन बेहद खराब क्वालिटी का होता है। इसे रिसायकल नहीं किया जा सकता। इस्तेमाल के बाद ये पॉलिथीन केवल कचरे का ढेर बढ़ाती है और मिट्टी में घुलने में सालों लग जाते हैं। पॉलिथीन के छोटे टुकड़े यानी माइक्रोप्लास्टिक वातावरण, जल स्रोतों और भोजन के जरिए हमारे शरीर में भी प्रवेश कर जाते हैं।

राजकुमार कहते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक शरीर में जाने के बाद क्रॉनिक इंफ्लेमेशन (लंबे समय तक सूजन), हृदय रोग, डायबिटीज, न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग, स्ट्रोक और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ा देता है।


लोगों की सोच में बदलाव

रुचिका और राजकुमार की मेहनत का असर अब नजर आने लगा है। रुचिका बताती हैं कि पहले लोग बाजार में सब्जियां खरीदने के लिए प्लास्टिक की थैली मांगते थे। लेकिन अब लोग बड़े कपड़े के थैलों के साथ-साथ छोटे कपड़े के थैले भी साथ लाने लगे हैं। यह बदलाव इस बात का संकेत है कि अगर लोगों को सही जानकारी दी जाए और लगातार जागरूक किया जाए तो आदतें बदल सकती हैं।

राजकुमार हर मंडी में जाकर दुकानदारों और ग्राहकों दोनों से आग्रह करते हैं कि पॉलिथीन लेना बंद करें। इसके बदले में वे कपड़े के थैले को बढ़ावा देने के लिए कभी नुक्कड़ नाटक तो कभी पेंटिंग्स के जरिए संदेश देते हैं।

कैंसर से लेकर डायबिटीज तक का खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी चेतावनी दे चुका है कि प्लास्टिक और पॉलिथीन के ज्यादा इस्तेमाल से होने वाला प्रदूषण दुनिया भर में हर साल लाखों लोगों की जान लेता है। पॉलिथीन के सेवन से कई बार पेट की गंभीर बीमारियां हो जाती हैं। सांस के जरिए भी प्लास्टिक के कण शरीर में जाते हैं, जो फेफड़ों को कमजोर कर देते हैं।

अगर अभी से पॉलिथीन का विकल्प नहीं खोजा गया तो आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ हवा और स्वस्थ भोजन देना नामुमकिन हो जाएगा। यही वजह है कि भोपाल जैसे शहरों में ‘प्लास्टिकमैन’ की पहल बड़ी मिसाल बन रही है।

आगे क्या कर सकते हैं आप?

1️⃣ बाजार जाएं तो खुद का कपड़े का थैला ले जाएं।
2️⃣ दुकानदार से पॉलिथीन न देने की अपील करें।
3️⃣ बच्चों को भी पॉलिथीन के दुष्परिणाम बताएं।
4️⃣ सोशल मीडिया पर जागरूकता फैलाएं।
5️⃣ जरूरत हो तो आसपास के इलाकों में ‘नो पॉलिथीन’ ड्राइव शुरू करें।

रुचिका और राजकुमार जैसे लोगों की कोशिश तभी सफल होगी जब शहर के हर नागरिक इस पहल में साथ खड़ा होगा। याद रखें, पॉलिथीन छोड़ेंगे तभी कैंसर जैसे खतरे से बच सकेंगे।

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