भारत की सबसे भव्य और प्रसिद्ध धार्मिक यात्राओं में से एक जगन्नाथ रथ यात्रा आज से पूरे देश में शुरू हो गई है। हर साल की तरह इस बार भी यह यात्रा ओडिशा के पुरी में खास उत्सव के साथ निकाली जा रही है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और भक्ति भाव से ओतप्रोत माहौल इस महापर्व को और खास बना देता है।
यह यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से आरंभ होती है और करीब आठ दिनों तक चलती है। इस बार रथ यात्रा 8 जुलाई तक चलेगी। पुरी के अलावा देश के कई हिस्सों में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा निकालते हैं, लेकिन पुरी की रथ यात्रा की बात ही अलग है।
तीन रथों की अनूठी परंपरा
पुरी में निकलने वाली रथ यात्रा में कुल तीन रथ होते हैं, जो भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन को समर्पित हैं। सबसे आगे उनके भाई बलभद्र जी का रथ चलता है, उसके बाद उनकी बहन सुभद्रा देवी का रथ और सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ जी का रथ आता है।
रथ यात्रा शुरू होने से पहले तीनों रथों की विधिवत पूजा की जाती है। सबसे खास परंपरा इसमें यह है कि पुरी के राजा खुद सोने की झाड़ू से मंडप और रास्ते की सफाई करते हैं। इसे ‘छेरा पहरा’ कहा जाता है, जो इस यात्रा की सबसे पवित्र रस्मों में से एक है। यह परंपरा सिखाती है कि भगवान के सामने राजा और रंक सब समान हैं।
लाखों श्रद्धालुओं की आस्था
पुरी में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने के लिए भक्त घंटों इंतजार करते हैं क्योंकि मान्यता है कि रथ को खींचने से सारे पाप मिट जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
रथ यात्रा में भक्तजन ‘जय जगन्नाथ’ के जयकारे लगाते हुए प्रभु के रथ को खींचते हैं और भक्ति गीतों के साथ आगे बढ़ते हैं। यह यात्रा पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है। वहां भगवान कुछ दिनों तक विश्राम करते हैं और फिर वापस श्रीमंदिर लौटते हैं।
आस्था, परंपरा और श्रद्धा का संगम
जगन्नाथ यात्रा न केवल ओडिशा बल्कि पूरे भारत की आस्था और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है और हर साल नई भक्ति ऊर्जा के साथ लोगों को जोड़ती है।
अगर आप कभी पुरी नहीं जा पाए हैं, तो इसे अपनी यात्रा सूची में जरूर जोड़ें। यहां की रथ यात्रा एक बार जरूर देखने लायक है।
क्या है तीनों रथों के नाम?
पुरी में निकलने वाली इस धार्मिक रथों के अलग-अलग नाम है।
- भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदी घोष है। इसके अलावा, गरुड़ध्वज के नाम से भी जाना जाता है। यह रथ 42.65 फीट है, जिसमें 16 पहिए होते हैं। यह रथ लाल और पीले रंग का होता है। वही, इस रथ के सारथी दारुक हैं।
- बलभद्र के रथ का नाम तालध्वज है, इसकी ऊंचाई 43.30 फीट है। यह भगवान जगन्नाथ के रथ से बड़ा होता है। इसका रंग लाल और हरा होता, इस रथ में 14 पहिए है। इस रथ के सारथी मातलि है।
- भगवान की बहन सुभद्रा का रथ का नाम दर्पदलन है और यह रथ 42.32 फीट ऊंचा है। इसका रंग लाल और काला है। इसमें 12 पहिए लगे होते हैं और इसके सारथी अर्जुन हैं।