आखिरकार दर्शकों का लंबा इंतज़ार खत्म हुआ। गांव की मिट्टी की खुशबू और देसी अंदाज़ से भरपूर वेब सीरीज़ ‘पंचायत सीजन 4’ रिलीज़ हो गई है। जैसे ही इस सीज़न के नए एपिसोड्स आए, दर्शकों ने इसे हाथोंहाथ लिया और सोशल मीडिया पर #Panchayat4 ट्रेंड होने लगा। असल में, ‘पंचायत’ वो शो है जिसने हिंदी बेल्ट के गांवों को स्क्रीन पर जीवंत कर दिया है। गांव की गलियों से लेकर पंचायत भवन, प्रधान जी की राजनीति से लेकर सचिव जी की उलझन तक, सब कुछ इतना असली लगता है कि दर्शक उसमें खुद को ढूंढ लेते हैं।
कहानी फिर से वहीं, मगर ताजगी बरकरार
‘पंचायत 4’ की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पिछला सीज़न खत्म हुआ था। इस बार कहानी का फोकस गांव फुलेरा के पंचायत चुनाव पर है। मंजू देवी (नीना गुप्ता) और क्रांति देवी (सुनीता राजवार) के बीच पंचायत प्रधान पद को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। दोनों ही अपने-अपने तरीके से वोटर्स को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। मुफ्त में लौकी, आलू बांटना हो या गांव की सड़क की सफाई कराना — हर हथकंडा अपनाया जा रहा है।
सचिव जी की मुश्किलें, भूषण का जाल
इस बार कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट ये है कि सचिव जी यानी अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) को भूषण (दुर्गेश कुमार) झूठे केस में फंसा देता है। सचिव जी पर आरोप लगता है कि उन्होंने भूषण को थप्पड़ मारा है। इसके चलते सचिव जी की CAT की तैयारी और करियर दोनों ही दांव पर लग जाते हैं। जब सचिव जी माफी मांगने भूषण के पास जाते हैं तो भूषण शर्त रखता है कि प्रधान जी (रघुबीर यादव) और विकास (चंदन रॉय) पर लगे हत्या के प्रयास के केस को वापस लिया जाए। यह मामला गांव की राजनीति को और उलझा देता है।
चुनावी रणनीतियां और गांव की राजनीति
गांव की राजनीति में हर चालाकी और जोड़तोड़ देखने को मिलती है। प्रधान गुट भूषण गुट के चंदू को अपनी पार्टी में खींचने की कोशिश करता है तो भूषण गुट पूर्व विधायक चंद्रकिशोर सिंह (पंकज झा) के साथ मिलकर प्रधान जी और विकास के घर पर छापा पड़वाकर उनकी छवि को खराब करता है। गांव में मुफ्त में सब्जियां बांटने से लेकर विरोधियों के पाले में बैठे लोगों को तोड़ने तक की रणनीति चलती रहती है। यह सब कुछ इतनी सादगी और मजाकिया अंदाज में दिखाया गया है कि हंसी भी आती है और गांव की सच्चाई भी झलकती है।
किरदारों ने फिर लूटी महफिल
‘पंचायत 4’ का सबसे मजबूत पक्ष इसके किरदार हैं। मंजू देवी के रोल में नीना गुप्ता फिर से अपनी सादगी और ताकत दिखाती हैं। क्रांति देवी के रोल में सुनीता राजवार ने शानदार काम किया है। उनका चालाक और चतुर अवतार दर्शकों को खूब भा रहा है। बनराकस (दुर्गेश कुमार) तो जैसे गांव का नया शरारती चेहरा बन गया है। रघुबीर यादव एक बार फिर अपने ठेठ देसी अंदाज से छा जाते हैं।
बिनोद (अशोक पाठक) का रोल भी इस बार अहम है। बिनोद के किरदार में इमोशन और गांव के गरीब तबके की झलक देखने को मिलती है। प्रह्लाद (फैसल मलिक) भी अपने इमोशनल सबप्लॉट से दिल छू जाते हैं। विकास के रोल में चंदन रॉय हर सीज़न की तरह इस बार भी हंसाते हैं और रुलाते भी हैं।
निर्देशन और स्क्रिप्ट का असर
निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा और लेखक अक्षत विजयवर्गीय ने इस सीज़न को भी पुराने फॉर्मेट पर ही बनाया है। यही इसकी खूबी भी है और कमजोरी भी। शुरुआती एपिसोड मजेदार हैं और फुलेरा की गलियों में वापस ले जाते हैं। लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, प्लॉट कुछ जगह ढीला पड़ता है। कुछ एपिसोड्स में लगता है कि कहानी में नई परतें जोड़ने की गुंजाइश थी।
हालांकि छोटे-छोटे सीन्स जैसे बिनोद को खाने-पीने का लालच देकर अपनी तरफ खींचना या विकास के घर से पैसे गायब कराना — ये सीन फिर से वही पुराना पंचायत वाला स्वाद दे जाते हैं।
क्या कमी रह गई?
कई दर्शकों को लगेगा कि इस बार ‘पंचायत’ में पिछले सीजन जैसा शार्प ह्यूमर और ट्विस्ट कम है। कहानी में कुछ जगह प्लॉट स्लो हो जाता है और सबप्लॉट्स का अभाव खलता है। लेकिन इसके बावजूद भी गांव की मिट्टी से निकली मासूमियत और किरदारों की नैचुरल एक्टिंग इसे दिल से जोड़ देती है।
क्यों देखनी चाहिए ‘पंचायत 4’?
अगर आप गांव की कहानियों, देसी राजनीति और सादगी से भरे किस्सों के दीवाने हैं तो ‘पंचायत 4’ आपके लिए परफेक्ट है। यह सीरीज उस शहरी दर्शक को अपनी जड़ों से जोड़ देती है जो अब गांव से दूर बसता है, मगर गांव की मिट्टी की खुशबू अब भी उसकी सांसों में कहीं न कहीं बसी है।