अमेरिका और इज़राइल के हालिया हमलों के जवाब में ईरान ने बड़ा कदम उठाते हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) से हर तरह का तकनीकी और निरीक्षण संबंधी सहयोग तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इस फैसले ने पश्चिमी देशों और सुरक्षा विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि अब दुनिया को यह पता नहीं चल पाएगा कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम में कितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
🇮🇷 हमलों से भड़का ईरान, IAEA को कहा अलविदा
खबरों के मुताबिक, अमेरिका और इज़राइल ने बीते हफ्ते ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हमला किया था। इसके बाद तेहरान ने IAEA को साफ संदेश दिया कि अब उसके निरीक्षकों को परमाणु साइट्स पर सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती। ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने संसद से पास हुए बिल पर दस्तखत कर दिए हैं, जिसके तहत IAEA से कोई भी सहयोग अब देश की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की निगरानी में होगा।
ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल ऊर्जा उत्पादन और शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन पश्चिमी खुफिया एजेंसियां और कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स कहती हैं कि ईरान के पास पहले से इतना संवर्धित यूरेनियम मौजूद है, जो हथियार-स्तर से बेहद करीब है।
अब कौन देखेगा ईरान के अंदर क्या चल रहा है?
IAEA ने फिलहाल कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया है। एजेंसी ने सिर्फ इतना कहा है कि वे ईरान से आधिकारिक सूचना का इंतजार कर रहे हैं। फिलहाल यह भी साफ नहीं है कि IAEA के निरीक्षकों को किन-किन परमाणु साइट्स तक पहुंच मिलेगी और कहां से उन्हें बाहर रखा जाएगा।
न्यूजवीक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान अब परमाणु बम बनाने से केवल एक कदम दूर खड़ा है और निगरानी हटने के बाद बाकी दुनिया को इसका अंदाजा भी नहीं लगेगा कि तेहरान यह कदम कब उठा सकता है।
अमेरिका ने कहा- गैरजिम्मेदाराना कदम
ईरान के इस कदम पर अमेरिका ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। वॉशिंगटन ने कहा है कि तेहरान ने IAEA से रिश्ता तोड़कर शांति की ओर लौटने का एक महत्वपूर्ण मौका गंवा दिया है। व्हाइट हाउस ने दोहराया है कि अमेरिका किसी भी कीमत पर ईरान को परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देगा।
बातचीत की सारी खिड़कियां बंद
इस ताजा घटनाक्रम के बाद ईरान और अमेरिका के बीच कूटनीतिक बातचीत की उम्मीदें लगभग खत्म मानी जा रही हैं। ट्रंप प्रशासन की तरफ से तत्काल बातचीत की पेशकश को ईरान पहले ही ठुकरा चुका है। ऐसे में विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर हालात जल्द नहीं सुधरे तो ईरान का अगला कदम उसे परमाणु बम के और करीब पहुंचा सकता है।
क्यों खतरनाक है यह फैसला?
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि IAEA की निगरानी हटने से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पारदर्शिता खत्म हो जाएगी। अब यह कहना मुश्किल होगा कि तेहरान यूरेनियम को किस स्तर तक संवर्धित कर रहा है और कब वह हथियार बनाने के लिए तैयार होगा।
अगर ईरान अपने संवर्धन को हथियार-स्तर तक पहुंचा देता है तो यह पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन को पूरी तरह बदल सकता है। इस फैसले से इज़राइल भी ज्यादा आक्रामक रुख अपना सकता है, जो पहले ही ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले करता रहा है।
क्या अब भी बातचीत की कोई गुंजाइश है?
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हालात कितने भी बिगड़ें, बैकडोर डिप्लोमेसी की उम्मीद हमेशा रहती है। कई बार अतीत में भी ईरान ने कठोर फैसलों के बाद समझौते की राह चुनी है। लेकिन मौजूदा हालात में वॉशिंगटन और तेहरान के बीच विश्वास की कमी और हमलों के बाद का तनाव फिलहाल बातचीत को मुश्किल बना रहा है।